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कविता

स्वाभिमान

सुरजन परोही


अभिमान नहीं
स्वाभिमान रच
देश-धर्म और जाति का
देश-धर्म और जाति-बीच

छल-कपट के जीवन में
स्वाद नहीं जीवन का
रुको और रोको
छल की दुनिया में
मनुष्य होकर जाने में
डरो-और-डरो

 


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हिंदी समय में सुरजन परोही की रचनाएँ